यह जीवन एक नदी है,
हर नदी कई जीवन है,
जब खिलती है पहाडो से,
है बच्चे सी नाज़ुक ये
फिर कई चट्टानों से टकराती ये,
तो कभी कही मुड जाती ये,
कभी गिरती उचाईयों से ये,
तो कभी शांत सी हो जाती ये,
लेकिन कभी न रूकती ये,
हर पल हर दम चलती ये,
फिर क्यों हम रुके है,
नदी के किनारों में बटे है,
जब चलना ही है एक दिशा में,
तो फिर क्यों हम जुदे है...?
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