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Saturday, 26 January 2013

बेवफ़ाई से बहाल, आशिको के हाल


भूल जाना तुझे मुमकिन था कब,
इस मर्ज़ का इलाज तू ही कर ऐ रब,

रहना चाहता था तेरी यादों मे क़ैद,
लेकिन तुझे ये रिश्ता मंज़ूर ना था तब.


काश हो मुमकिन तुझे आये यकीन,
अब उन जज़्बातों मे हसा करते है सब.


निकला जनाज़ा जज़्बातो का मेरा,
रहमतो की बारिश अब करेंगे रब.

भूल जाना तुझे मुमकिन नही अब....

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