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Thursday 13 December 2012

लौ


मिल गई आज़ादीयाँ हमे,
गया है अंग्रेज़ो का राज़,
65 बरस बाद भी हम,
भूखे और लाचार है आज,

जाने कब यह भूख मीटेंगी,
कब हमारा कल मुस्कुराएगा,
जाने कब हम आज़ाद होंगे,
अपने लालच और भ्रष्टाचार से,

आओ मिलकर लौ जलाये,
हम भी अपने सीने मे,
जिस लौ ने सीची हमारी आज़ादीयों की गाथा,
चलो चलकर चढ़ाए हम अपनी मा को माथा,

जो हम सब लौ जलायें अपने तंग सीनों मे,
मिट जायेगी भूख हमारी इस दुनिया के प्यालो मे,
देखेंगी दुनिया हमे फिर सोने की चिड़ियाँ सी,
जो हम अपनी लौ जलाये आज़ादी के वीरो सी.




लौ की तरह लहरा रहा तिरंगा,
मात्रभूमि की शान है तिरंगा,
चलो चलकर लौ जलाए,
ताके गर्व से लहरा सके तिरंगा...

जय हिंद..

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